Monday, April 2, 2018

ज़िन्दगी - एक दौड़।

नदी में पानी की धारा सा बहते,
इस वक्त को गुजरते देखता हूँ।
पैसों की होड़ मे लोगों को,
अपनी किस्मत से जुझते देखता हूँ।
तो सोचता हूँ - क्या है खुशी? क्या है संतुष्टी?

सबसे आगे निकलने की दौड़ में,
अपनी सांसों को ज़ाया करते देखता हूँ।
जीतने वाला.तो जीत गया,
पीछे रहे जाने वालोँ को निराश देखता हूँ
तो सोचता हूँ - क्या यह ही ज़िंदगी है? - एक दौड़?

बड़ा घर, बड़ी गाड़ी, बड़े सपनो के पीछे,
सबको अपनी जवानी खपाते देखता हूँ
तो सोचता हूँ - यह उम्र जीने के लिए है या खुद को खपा देने के लिए?

आज वक्त है, हिम्मत है, साथ है।
कल पैसा होगा, हिम्मत नहीं, वक्त होगा पर शायद साथ नहीं।

~ प्रतीक सिक्का

2 comments:

  1. Its awesome to see the poet in you make a comeback. Loved the piece.

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